Monday, August 10, 2020

अयोध्या: सांस्कृतीक सौहार्द का इतिहास



अयोध्या रामपूर्व जमाने से भारत देश की सांस्कृतीक राजधानी रही हैं. यहां सबसे पहले फुली फली व्ह समन संस्कृती थी जिसका आरंभ हम सिंधु संस्कृते के समय तक पिछे ले जा सकते हैं. इस देश का नाम भारत वर्ष होने से पहले चक्रवर्ती नाभी के वजह से "नाभी वर्ष" हुआ करता था. यह विख्यात हैं कि नाभी जैन धर्म के पहले तीर्थंकर ऋषभनाथ के पिता थे. उनकी राजधानी थी अयोध्या. उन्होने जितने भी प्रांत जित लिये उन प्रांतों को नाभीवर्ष कहलाया जाता था. ऋषभनाथ का जन्म अयोध्या में ही हुआ. समन संस्कृती की धारा मे उन्होने बडा योगदान दिया. पहले तीर्थंकर बने और जैन धर्म की नींव रखी. जैनों के इतिहास में अयोध्या का एक खास स्थान हैं. वजह ये हैं कि अयोध्या में अजितनाथ, अभिनंदननाथ सुमतीनाथ और अनंतनाथ इन महनीय तीर्थंकरों का भी जन्म हुआ. अयोध्या एक ढंग से समन संस्कृती को चरम सीमा पर ले जाने में सहायक हुई.

अब इस बारे में कोई संदेह नहीं रहा हैं कि इस देश का नाम भारत वर्ष हुआ वह आद्य तीर्थंकर ऋषभनाथ के शूर पुत्र चक्रवर्ती भरत के वजह से. भरत की राजधानी भी अयोध्या ही थी और वहीं से उन्होने अपना साम्राज्य अधिकांश द्विपकल्प में फैलाया. मगध में नंद साम्राज्य की वजह से राजगृह राजधानी बनने से पहले यह कहा जा सकता हैं की इस देश की प्रभुसत्ता पहले अयोध्या में केंद्रित हुई थी. ना सिर्फ संस्कृतीक मगर राजनैतीक राजधानी बनने का सौभाग्य अयोध्या को मिलने में नाभी से लेकर अन्य जैन सम्राटों का भी हिस्सा रहा हैं.

अयोध्या में जैसे समन संस्कृती अपनी नींव बनाएं बैठी थी वैसे ही शिवपुजकों की आदिम संस्कृती भी साथ ही साथ में पल-बढ रही थी. बाद के समय में रघु वंश के श्रीराम का जन्म अयोध्या में हुआ ऐसी मान्यता हैं. राम मुल रुप से शिव संस्कृती के थे. मगर बाद मे दक्षीण अफगाणिस्तान से यहां वैदिक धर्म प्रविष्ट हुआ. गुप्त काल के दौरान वैदिकों को जैसे ही राजमान्यता मिली उन्होने पुराणे काव्य-इतिहास ग्रंथों मे बदलाव लाकर वैदिक महत्ता को घुसेडना शुरु किया. कृष्ण, राम जैसे अवैदिकों का वैदिकीकरण किया गया. उन्हे वैदिक देवता विष्णु  के अवतार बताने जाने लगा. यहां तक की अवैदिक शिव का वैदिकीकरण करने के प्रयास में वैदिक देवता रुद्र और शिव का सम्मीलन करने की कोशिश हुई. मगर यह सब हुआ दुसरी सदी के पश्चात. उससे पहले ऐसी कोई मान्यताए नहीं थी यह हमे अंगविज्जा और गाहा सतसई इन प्राकृत ग्रंथों से पता चलता हैं.

अयोध्या में विवादित जगह पर कई उत्खनन हुए. एक भी उत्खनन में वहां कोई पुरातन राम जन्मभ्मी पर मंदिर था इसके सबुत नहीं मिले. वहां इसाप्र्व चौथी सदी की एक मृण्मयी जैन प्रतिमा मिली ऐसा पुरातत्वविद बी. बी. लाल ने घोषित किया था. देश में मिली यह सबसे पुरातन जैन प्रतिमा हैं जो विवादित जगह पर मिली. बाद के भी कुछ अवशेष मिले, प्रतिमाएं मिली और कुछ सिक्के भी मिले मगर उन्हे राम से जोडा नहीं जा सका. हाल हे में एक दावा किया गया कि वहां शिवलिंग और नक्कासीदार खंबों के अवशेष मिले हैं. दावा सच भी हो तो वे शिवमंदिर के प्रमाण हैं, राम मंदिर के नहीं. सबसे पहले ये बात ध्यान में लेना जरुरी हैं कि शिवप्रधान हिंदू धर्म में, यह धर्म व्यक्तिगत होने की वजह से, सार्वजनिक मंदिर बनाने की प्रथा काफी देर बाद आई. सबसे पुराने मंदिर की प्रतिमा हमें मिलती हैं वह कुनींद गणराज्य के सिक्केपर और वह भी एक शिवमंदिर की हैं और इसापुर्व १५० की हैं. इसलिये अयोध्या में इसापुर्व का कोई मंदिर राम जन्मभुमीपर होगा यह बात तर्कसंगत नहीं हैं.

वैदिक धर्म यज्ञप्रधान होने से उनमें मंदिर तो क्या देवताओं की प्रतिमाएं बनाने की भी अनुमती नहीं थी. आज भी इंद्रादिप्रमुख वैदिक देवताओं के मंदिर दुष्प्राप्य हैं. हमें वैदिक संस्कृती के पुरातन अवशेष मिलते हैं वह यज्ञं के लिए बनाएं गये युपों का, प्रतिमाओं का नहीं, यह बात भी ध्यान देने योग्य हैं. राम कोई मंदिर परातन समय में बना हो इस बात की कोई संभावना नहीं नजर आती. बौद्ध और जैनों के विहार-स्तुपों के चलन में आने के बाद हिंदु भी मंदिर बनाने लगे मगर वे प्राय: छोटे हुआ करते थे. वैदिकों के मंदिर बांधने का तो कोई सवाल ही नहीं था.

मगर यह बात साफ हैं कि श्रीराम का मुल चरित्र अयोध्या से जुडा हैं. इस देश का एक आदर्श व्यक्तित्व राम के रुप में देखा जाता हैं. राम पुजनीय नहीं मगर एक अनुकरणीय व्यक्त्त्व थे इस बात में कोई संदेह नही हैं. जैनों ने और बुद्धों ने भी राम को अपना ही समझा है. जैन रामायण प्रसिद्ध हैं वसेही बौद्धों का दशरथ जातक सुपरिचित हैं. वैदिकीकरण हुए रामायण की अपेक्षा रामजीवन के वास्तविक तथ्य हमें जैन रामायण से ही मिलते हैं. राम भारतीय संस्कृती के ऐसे एक व्यक्ती हैं जिन्हे सबने, यहां तक की मुस्लिमों ने भी अपनाया हैं. हर गां, हर बस्ती में राम से जुडी कहानियां हैं. राम राम यह शब्द अभिवादन का तो हैं ही जीवन की अंतिम यात्रा के समय भी राम नाम कहा जाता हैं. मगर इस देश में राम मंदिर अब भी बहो कम हैं क्योंकि राम जनसमाज ने हमेशा अनुकरणीय आदर्श माना. पुजनीय कोई बन जाता हैं तो उसके चरित्र का अनुसरण कौन करेगा? अवैदिक हिंदु और अन्य धर्मसमाजों ने यह बात हमेशा ध्यान में रखी थी.

वैदिकों सहित हर धर्म-संप्रदाय ने राम को अपने अपने ढंग से देखा. राम कभी भी संघर्ष का कारण नहीं बना था. अयोध्या में अहिल्यादेवी होलकर ने अठरवी सदी में राम मंदिर सहित अन्य चार मंदिर बनाएं थे तब अयोध्या पर असिफौद्दौला अमानी का शासन था. उससे पहले, १७३७ में अयोध्या के मुस्लिम नबाब के दिवान केसरी सिंग ने अयोध्या में जन्मे पांचों तीर्थंकरों के मंदिर बनाएं. अयोध्या का अर्थ ही हैं, "जहां युद्ध नहीं किया जा सकता वह भूमी." यह नगरी किसी एक की नही. भगवान बुद्ध ने इस नगरी में आठ वर्ष वर्षावास किया था. यह संस्कृती की निर्मिती करने वाली भूमी हैं, नष्ट करनेवाली भूमी नहीं. सांस्कृतीक एकता का पुराना इतिहास इस नगरी से जुडा हैं. अब राम मंदिर की नींव भी रखी गई हैं. जैन संस्कृती के  अवशेष विवादित जगह पर मिलने के बावजुद अपनी धर्मसंस्कृती के विचार मद्देनजर रखते हुए जैनों ने उस भुमीपर दावा नहीं किया. बौद्धों ने भी अपने दावों में कडवाहट नहीं आने दी. अयोध्या का इतिहास संस्कृतियां जोडने का इतिहास हैं, तोडने का नहीं यह हम सब भारतियों को ध्यान में रखना चाहिएं. इसी में राम की महत्ता की रक्षा हैं.

-संजय सोनवणी

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